बिलासपुर

पत्रकारिता जगत के एक अध्याय का अंत ।
बहुत याद आएंगे शशिकांत कोन्हेर  (भाऊ) ! श्रद्धांजलि

बिलासपुर । वो जबभी मिलते थे बड़े ही गर्माहट से मिलते थे । उनसे मिलकर कभी ऐसा अहसास ही नहीं हुआ कि वो हमसे काफी सीनियर हैं । उन्हें मैंने कभी भी सीनियर जूनियर की मानसिकता में उलझते नहीं देखा । भाऊ में एक जादुई छवि थी । वो अपनी बातों से सबको बांधकर रखते थे । पुराने किस्सों की उनकी पोटरी कभी खाली नहीं होती । किसी भी प्रसंग को वो डूबकर सुनाते थे । कहने सुनने के दौरान उनका विनोदी स्वभाव हमें खासा आकर्षित करता था । वो लम्बे समय तक बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष रहे । इस दौरान वो पत्रकारों के हित में सदैव तत्पर दिखे । वो विशुद्ध नेतृत्वकर्ता थे । प्रायः सभी पत्रकार उनकी कही हुई बातों का सम्मान करते थे । हमने कई बार उन्हें पत्रकारहित में सड़क पर आंदोलन करते देखा । शासन-प्रशासन से टकराना और फिर एक सफल कूटनीतिज्ञ की तरह अपने काम को अंजाम देना,ये उनकी ताक़त थी । मुझे भाऊ के चेहरे का भाव सदैव एक जैसा दिखा । भीतर तनाव भी हो लेकिन बाहर सदैव एक मुस्कुराती छवि ही दिखती थी । वो सदा सबको लेकर चलते थे और सबके हितों की रक्षा करते नजर आते थे ।




भाऊ की मेमोरी भी बड़ी तेज थी । उन्हें सबकुछ याद रहता था । उनकी लेखनी तो उम्दा थी ही लेकिन उनका किसी प्रसंग विशेष को सुनाने का ढंग भी जोरदार था । मैंने उन्हें कभी भी किसी ख़ास विचार के अधीन होते नहीं देखा । एक ऊंचा पत्रकार ऐसा ही होता है । वो लम्बे समय से बीमार चल रहे थे । वो कई बार मौत को पटखनी दे चुके थे,लेकिन इस बार शायद ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था । सचमुच आज उनके जाने के बाद ऐसा लगता है कि पत्रकारिता जगत के एक अध्याय का अंत हो गया है । विनम्र श्रद्धांजलि !

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