डंकाराम/ डेस्क/ छत्तीसगढ़/
बिलासपुर/प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से बाहर क्या हुई हर छोटे से बड़े कार्यकर्ता का दर्द छलक कर बाहर आ रहा है… अब ये दर्द है या फिर एक दूसरे को निपटाने की साजिश के बीच पार्टी के अंदर चल रही उठापटक… इतना तय है कि कांग्रेस के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है…. हालाकि की सत्ता के दौरान भी इस तरह के विद्रोही तेवर सामने जरूर आ रहे थे लेकिन उनमें इतनी तल्खी नही थी…. जो अब दिखाई दे रही है… वैसे कांग्रेस भवन की वो तस्वीर वो नजारा शायद ही कोई भुला होगा जब रायपुर में कांग्रेस भवन में नारेबाजी कर रहे कार्यकर्ताओं को तत्कालीन सूबे के मुखिया ने जो तेवर दिखाए थे उसके बाद से बगावती तेवरों के सुर दबी जुबान से मुखर होने लगे थे… लेकिन सत्ता की चाशनी में बगावती तेवर ऐसे डूबे की कोई चाह कर भी अपनी जबान न खोल सका….
अब सत्ता जाने के बाद चाशनी क्या सुखी तेवरों के सुर खुलकर सामने आने लगे है….. इससे पहले चुनाव के दौरान कुछ को बाहर रास्ता दिखाने और अनुशासन का डंडा दिखाते हुए बाहर का रास्ता दिखाया गया… पार्टी नियमो के तहत ऐसे जयचंदो को छह साल के लिए निष्कासन का नोटिस थमाया गया ताकि दूसरे पार्टी लाइन के खिलाफ न जा सके…लेकिन जैसे ही लोकसभा चुनाव में पार्टी को लगा कि जयचंदों को वापिस लेना जरूरी है ऐसे में नियमो की शिथिलता का चार्ट पकड़े हुए पार्टी ने निष्कासित चेहरों को वापिस क्या लिया…. जुबान में लगे ताले बिना चाबी के ही खुल गए… और अभी कुछ दिन पहले मंच पर एक जुबानी बम फूट गया… बम ऐसा फूटा कि बोलने वाले ने पूर्व और भूतपूर्व तक का लिहाज नही किया… कल तक जो सी…. म साहब , या कुटिल मुस्कान लिए मजबूरी में भईया कहकर काम निकालते थे आज वही ऐसे पराए हुए कि मंच में पूर्व साहब की किरकिरी कर डाली… ये पूरा वाकया राजनांदगांव के एक चुनावी मंच था.. नेता जी का लबे समय से गले में दबा ज्वाला मुखी फूट पड़ा और हार का सारा टिकरा पूर्व पर मढ़ डाला….
विद्रोही ज्वाला मुखी का ये लावा अभी ठंडा भी नही हुआ कि सामने आए एक लैटर बम ने पार्टी की फजीहत करा डाली….यानी जो बातें गोपनीय रहना थी वह सार्वजनिक हो गई… और जब बात निकली तो दूर तलक जा पहुंची… हालांकि ध्यान बटाने के लिए अब जुबान की सफाई वाली झाड़ू से ये सफाई दी जा रही है कि ये गोपनीय पत्र बाहर कैसे आ गया ..?? सवाल ये नही कि लेटर कैसे बाहर आया …. सवाल ये कि किस गुट ने ये लेटर बाहर ला दिया…. अब ये बात तो सभी जानते है कि सूबे के तत्कालीन के साथ कौन कौन थे जो दबी जुबान और नजरे तिरछी करके इशारों में बहुत कुछ कमाल कर जाया करते थे… मजबूरी बस इतनी थी कि सत्ता की रबड़ी सब चाट रहे थे इसलिए जानकर भी अनजान बने बैठे थे… अब सत्ता रही नही.. तो रबड़ी का कटोरा भी खाली है… तो चाटने को कुछ बचा नहीं तो जिन्होंने रबड़ी में नमक मिलाया था अब उन्हें नमक हरामी से भला कैसा परहेज…..??? खैर पार्टी के अंदर एक बीमार हो तो इलाज किया जाय…. अब जब पार्टी में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति हो तो सिरदर्द की दवा किस किस को दी जाए… क्योंकि कार्यवाही की कड़वी गोली पार्टी के अंदर बची नही है…. इसलिए अब सत्ता से बाहर रहते हुए मन का दर्द, दिल का दर्द जुबान पर आ भी जाए तो आलाकमान को क्या पड़ी है…. क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत….. अब तो पार्टी को बचाने की चिंता नहीं, अपनो के दिए दर्द से एक दूसरे को निपटाने की कवायद ज्यादा हो रही है…. सभी ये भूल रहे है कि पार्टी से इनकी पहचान है… इनसे पार्टी की नहीं…..
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विनोद कुशवाहा