

अजय राय की कलम से
डेस्क खबर कोरबा-कुसमुण्डा../ एसईसीएल की कोयला खदानों में अब “बाउंसर संस्कृति” तेजी से पनप रही है। निजी ठेका कंपनियां भूविस्थापितों से निपटने के लिए अब बाउंसरों का सहारा लेने लगी हैं, जिससे मजदूरों और प्रभावित ग्रामीणों में गहरा असंतोष फैल गया है। बताया जा रहा है कि एसईसीएल कुसमुण्डा क्षेत्र के अधीन कार्यरत ठेका कंपनी नीलकंठ प्रबंधन ने विवादों को दबाने के लिए महिला बाउंसरों तक की तैनाती कर दी है। जो जायज मांगो पर आवाज उठाने वाले ग्रामीणों की सरेआम पिटाई करती हुई नजर आ रही है ।
स्थानीय और secl प्रबंधन की मनमानी से परेशान lलोगों का आरोप है कि कंपनी का रवैया पूरी तरह मनमाना और अमानवीय हो चला है। प्रभावितों की जायज मांगों को अनसुना कर उन्हें डराने-धमकाने का काम किया जा रहा है। हाल ही में कुसमुण्डा के चंद्रनगर क्षेत्र के भूविस्थापित किसान समीर पटेल के साथ हुई घटना ने आक्रोश को और बढ़ा दिया है। समीर पटेल पिछले एक वर्ष से नौकरी की मांग को लेकर कंपनी के चक्कर काट रहे थे। जब वे नीलकंठ कंपनी के दफ्तर पहुंचे तो एचआर अधिकारी मुकेश सिंह ने महिला बाउंसरों से उनकी पिटाई करवा दी।
इससे पहले भी महिला भूविस्थापितों के साथ अभद्रता और जोर-जबरदस्ती करने का वीडियो वायरल हो चुका है। बावजूद इसके कंपनी प्रबंधन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सीधे-सीधे कानून व्यवस्था को चुनौती है। सवाल उठता है कि जब एसईसीएल एक सरकारी उपक्रम है, तो क्या उसे अब निजी बाउंसरों के सहारे अपनी नीतियां लागू करनी होंगी? ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर इस “बाउंसर राज” पर रोक नहीं लगी, तो वे व्यापक आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। अब देखना होगा कि secl प्रबंधन पूरे मामले में अपनी चुप्पी कब तोड़ता है और महिला बाउंसरों के इस कृत्य पर कब तक लगाम लगा पाता है ।