
डेस्क खबर बिलासपुर– शहर में भारी वाहनों की आवाजाही को लेकर भले ही कड़े प्रतिबंध लागू होने की बात जिले के उच्च अधिकारियों द्वारा कही जाती हो, लेकिन जमीनी सच्चाई इससे बिलकुल अलग है। नियमों के मुताबिक, जरूरी वस्तुओं से भरे वाहनों को ही तय समय-सीमा में प्रवेश की अनुमति है, लेकिन सुबह से लेकर शहर की सड़कों पर खतरनाक हाइवा , बिना नंबर की ट्रैक्टरों ट्रकों और माजदा वाहनों की आवाजाही लगी रहती है..
बिलासपुर शहर के छठ घाट से गुरुनानक चौक के बीच ट्राफिक विभाग के जवान सुबह करीब 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक चेकिंग करते नजर आते है लेकिन आश्चर्य की बात है कि दोपहिया वाहनों को पकड़ चलानी कार्यवाही करने वाले आरक्षकों और यातयात निरीक्षक के सामने से नो एंट्री के बाद भी हाइवा ट्रैक्टर कैप्सूल गाड़ी हाइवा सहित रेत डस्ट राखड़ से लदी गाड़ियों को रोकने में यातायात विभाग दिलचस्पी नहीं दिखाता है

जिसके चलते नो एंट्री के बाद भी भीड़ भाड़ वाले इलाकों में इनकी एंट्री बेखौफ चालू रहती है, वहीं तोरवा पुल के पहले चल रहे चेकिंग अभियान का जिम्मेदारी निरीक्षक नवीन देवांगन को मिली हुई है लेकिन वे मोबाइल में व्यस्त रहते है, वहीं यातायात अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने भी जानकारी दी कि, रेत और भारी वाहन को रोकने के आदेश जारी किए हुई है और इस मामले की जांच की बात भी कही है.. दिन रात रफ्तार से दौड़ते नजर आए। यह स्पष्ट था कि ये वाहन किसी जरूरी सामान की आपूर्ति के लिए नहीं आए थे..
जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भी ऐसे भारी वाहनों का बेरोकटोक प्रवेश हो रहा है, जबकि इन्हीं समयों में इनके प्रवेश पर रोक है। इससे यह सवाल उठना लाजमी है कि ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी के बावजूद यह सब कैसे संभव हो रहा है। आम नागरिकों में चर्चा है कि या तो ट्रैफिक व्यवस्था में लापरवाही है या फिर कहीं न कहीं मिलीभगत का मामला है। अगर ऐसे वाहनों पर सख्ती नहीं की गई, तो यह न केवल यातायात अव्यवस्था को बढ़ावा देगा बल्कि आमजन की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता है।


अब सवाल उठता है कि जब ट्राफिक विभाग के टी आई के सामने यह सब खेल खुलेआम चल रहा है तो फिर बाकी जगह क्या हाल होगा । और सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि कोई हादसा होता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ..?? और क्या यातयात नियम सिर्फ दुपहिया वाहनों पर ही लागू किए गए है .??


