आदिवासी हवलदार की खुदकुशी से मचा हड़कंप .?
ट्रेनी अफसर संदेह के घेरे में .! परिजनों ने कहा थाने का था टेंशन .!
पूर्व विधायक ने बताया आदिवासी विरोधी है विष्णु सरकार .!
बिलासपुर डेस्क ./ बिलासपुर के सरकंडा थाने में पदस्थ आदिवासी प्रधान आरक्षक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली …खुशमिजाज और मिलनसार आरक्षक की मौत के बाद पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया ..
और थाने के अंदर से मिली सूत्रों के अनुसार ट्रेनी डीएसपी और थाना प्रभारी रोशन आहूजा द्वारा हवलदार को चेंबर में बुलाकर डांट फटकार लगाई गईं थी जिसके कारण मृतक पुलिसकर्मी काफी डिप्रेशन में चला गया था ..नाम न छापने की शर्त में थाने के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 302 या 307 या किसी और अन्य ( अस्पष्ट) किसी मामले में कोर्ट ने थाना प्रभारी सरकंडा को जब्ती समान पेश करने के लिए नोटिस द्वारा आदेशित किया था । इसी मामले को लेकर अफसर के डांट फटकार से हवलदार लखन मेश्राम काफी तनाव में थे ..
सूत्र तो यह बताते है की थाना प्रभारी ने उन्हें सस्पेंड करवाने तक की धमकी दी थी.. ?
सूत्र तो नाम न छापने की शर्त पर यह दावा कर रहे है कि मृत पुलिसकर्मी ने बैंक से लोन भी लिया था और वेतन के भरोसे वे कर्ज की किश्त भी जमा कर रहे थे .!
नौकरी से सस्पेंस करने की धमकी से भयभीत होकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली । इतना ही नहीं विभागीय सूत्रों की माने तो थाना प्रभारी ने सरकंडा थाने में पदस्थ एक आरक्षक से भी हवलदार लखन मेश्राम को फोन करवा कर उनपर मालखाने के संबंध में जानकारी लेने और तत्काल साहब का आदेश पालन करने को कहा था ..बार बार एक ही मामले में ट्रेनी डीएसपी द्वारा मालखाने से जुड़े मामले में लगातार दबाव के चलते पुलिसकर्मी ने आत्महत्या कर ली ..सूत्र की माने तो मोबाइल काल रिकार्ड और सीसीटीवी कैमरे की जांच से सच सामने आ सकता है .?
हवलदार लखन मेश्राम के बेटे कृष्णकांत मेश्राम के अनुसार विभाग के काम के दबाव के चलते उसके पिता परेशान रहते थे। कोई पारिवारिक टेंशन उन्हे नही थी ।
सरकंडा थाना क्षेत्र के मोपका में रहने वाले लखन मेश्राम (53) प्रधान आरक्षक के पद पर थे। वे जीपीएम जिले के ग्राम धनगांव के रहने वाले थे। 1997 में पुलिस में आरक्षक के पद पर भर्ती होने के बाद बस्तर में उनकी ट्रेनिंग हुई थी। बिलासपुर के रतनपुर,कोटा समेत अलग अलग थानों में वे पदस्थ रह चुके है। वर्तमान में सरकंडा थाने में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ थे। इससे पहले डायल 112 में उनकी तैनाती थी। पिछले साल ही प्रधान रक्षक के पद पर पदोन्नति मिलने के बाद वह सरकंडा थाना आए पिछले 4 माह से उन्हें माल खाने की इंचार्ज की जवाबदारी सौंपी गई थी।
विभागीय की सूत्रों की माने तो मालखाने का जो सामान अदालत में जमा करना था उसमे से कुछ सामान गायब था जिसके चलते प्रधान आरक्षक लगातार परेशान रहता था। मालखाने का इंस्पेक्शन भी होने वाला था, जिसमे सामान का मिलान नहीं होने पर प्रधान आरक्षक लखन मेश्राम को निलंबित होने का भी भय सता रहा था। हालांकि विभागीय अफसरों के मुताबिक मालखाने में रखा नगदी रकम व सामान गायब था या नहीं यह जांच के बाद ही सपष्ट हो सकेगा ?
सूत्रों के अनुसार फांसी लगाने के 1 दिन पहले भी डीएसपी ने प्रधान आरक्षक को डांटा था। पर इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है। गुरुवार की शाम ड्यूटी से जाने के बाद एक आरक्षक से रात को डीएसपी ने प्रधान आरक्षक को फोन भी करवाया था।
फिलहाल आदिवासी पुलिसकर्मी खुदकुशी मामले में राजनीति भी शुरू हो गई है ।बिलासपुर के पूर्व विधायक शैलेश पांडे ने भी आदिवासी मुख्यमंत्री के शासन में आदिवासी वर्ग से आने वाले पुलिसकर्मी की मौत पर राज्य सरकार को घेरते हुए निष्पक्ष जांच कर दोषी अफसरों पर कड़ी कार्यवाही कर मृत पुलिसकर्मी के परिजनों को सहायता राशि और सुरक्षा की मांग की है ।
अब देखना होगा कि इस मामले का सच कब तक सामने आता है.? लेकिन जिस प्रकार पुलिस ने शव बरामद होने के बाद तेजी और तत्परता से एक घंटे में शव का पोस्टमार्टम कर उसे परजिनों को सौप दिया उस पर भी सवाल खड़े हो रहे है.? और दबी जुबां भी चर्चा है कि एक घंटे के अंदर मरचूरी से शव का पोस्टमार्टम कर शव को घर भेजा गया वो शायद पहिली बार हुआ है .?
आरोप तो तमाम है लेकिन सच क्या है ? यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन हकीकत यही है की दो बेटियों और एक बेटे ने काम के दबाव में अपने पिता को खो दिया ।