एनटीपीसी फ्लाई ऐश परिवहन घोटाला: ट्रांसपोर्टर और अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों की हेराफेरी..पुलिस से हुई शिकायत , सकते में प्रबंधन ..!!


डेस्क खबर बिलासपुर l बिलासपुर के सीपत में स्थित एनटीपीसी सीपत पवार प्लांट से निकलने वाले राखड़ (फ्लाई ऐश) के परिवहन में बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। आरोप है कि ट्रांसपोर्टर और एनटीपीसी अधिकारियों की मिलीभगत से वर्षों से करोड़ों रुपये का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। नियमानुसार सीपत से निकलने वाली राखड़ को 120 से 130 किलोमीटर दूर उरगा-पत्थलगांव क्षेत्र में डंप किया जाना चाहिए, लेकिन ट्रांसपोर्टर केवल 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जयरामनगर और खैरा की खदानों में राखड़ डंप कर रहे हैं। इसके बावजूद कागजों में लंबी दूरी तय कराना दिखाकर एनटीपीसी से परिवहन शुल्क वसूला जा रहा है।

इस घोटाले में आर्शीवाद ट्रांसपोर्ट के प्रोपराइटर मोनू राजपाल का नाम सामने आया है, जिन्हें सीपत एनटीपीसी से फ्लाई ऐश परिवहन का वर्क ऑर्डर मिला हुआ है। स्थानीय लोगों ने 10 सितंबर को रंगे हाथ 8 ट्रेलरों को पकड़ा, जिनके वाहन क्रमांक CG 10 BJ 9686, CG 10 BJ 9979, CG 10 BS 9455, CG 10 BJ 9389, CG 10 BJ 9474, CG 10 BJ 9383 और CG 10 BS 9105 दर्ज किए गए। एक वाहन पर नंबर प्लेट भी नहीं था। इन वाहनों के पास खदान में राखड़ डालने के लिए किसी भी प्रकार की प्रशासनिक अनुमति (NOC) नहीं थी।

शिकायत में यह भी सामने आया कि ट्रकों में लगे जीपीएस को कार में रखकर लंबी दूरी तय करना दिखाया जाता है। वहीं, राष्ट्रीय राजमार्ग पर आने वाले टोल टैक्स की फर्जी रसीदें बिलों में लगाई जाती हैं। इस तरह से एनटीपीसी और एनएचएआई अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये का अवैध वसूली किया जा रहा है। यही नहीं, चालान और कोटा पर्ची को षड्यंत्रपूर्वक पत्थलगांव तक पहुंचाकर वहां से एनएचएआई अधिकारियों से रिसिविंग कराई जाती है और फिर सीपत एनटीपीसी में जमा कर दिया जाता है।

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि यह खेल लंबे समय से चल रहा है और अब तक लाखों-करोड़ों रुपये का गबन हो चुका है। इस मामले में मस्तूरी थाने में शिकायत की गई है और पुलिस ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है। क्षेत्रवासियों की मांग है कि परिवहन मार्ग और एनटीपीसी राखड़ डेम गेट पर लगे सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित किया जाए, ताकि सबूत मिटाए न जा सकें। साथ ही, निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। यह मामला न केवल बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को उजागर करता है बल्कि पर्यावरण और प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।