
दीपक शोभवानी की रिपोर्ट
रायगढ़ : छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के पुसौर तहसील में मंगलवार को बिजली टावर के नाम पर ऐसा बवाल मचा कि प्रशासन और छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (CSPTCL) के होश उड़ गए। ग्राम कौवाताल और फुटकापुरी में एक किसान की जमीन पर बिना पूरा मुआवजा दिए टावर खड़ा करने की कोशिश ने ग्रामीणों का गुस्सा भड़का दिया। नारेबाजी, हंगामा और एकजुटता के दम पर किसान और ग्रामीणों ने कंपनी के कर्मचारियों को खेत में घुसने से रोका। तहसीलदार, थाना प्रभारी और CSPTCL के अफसर समझाइश का झुनझुना बजाते रहे, मगर किसान के तेवर देखकर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।

किसान का रोना: मेहनत की कीमत बाकी
किसान का आरोप है कि उसके खेत में बिना सहमति के टावर का तामझाम शुरू किया गया। खेत में लगे 3775 आम के पेड़ उसकी जिंदगी की पूंजी हैं, मगर सिर्फ 562 पेड़ों का मुआवजा मिला। बाकी 3213 पेड़ों की कीमत आज तक प्रशासन के खजाने में अटकी पड़ी है। 06 अप्रैल 2023 को अनुविभागीय अधिकारी के आदेश पर पेड़ों की गिनती हुई थी। फिर 15 जून 2023 को पत्र क्रमांक 427 के जरिए मुआवजा देने का फरमान भी जारी हुआ। लेकिन कागजों की सैर कराने में माहिर प्रशासन ने किसान की मेहनत को ठेंगा दिखाया, जिसने आखिरकार बगावत का बिगुल बजा दिया।

ग्रामीणों का जोश, कर्मचारियों की हालत खराब
मंगलवार को जब प्राइवेट कर्मचारियों ने खेत की बाड़ तोड़कर टावर का ढांचा खड़ा करने की हिमाकत की, तो ग्रामीणों का पारा चढ़ गया। देखते ही देखते महिलाएं और पुरुष भारी तादाद में जुट गए। नारों की गूंज और विरोध की आग ने माहौल को गरमा दिया। तहसीलदार नेहा उपाध्याय और थाना प्रभारी पुसौर ने बीच-बचाव की कोशिश की, मगर किसान अपनी मांग पर अड़ा रहा—पूरा मुआवजा दो, तभी टावर की बात होगी। ग्रामीणों ने साफ लफ्जों में चेतावनी दी कि जब तक हर पेड़ का हिसाब नहीं, खेत में एक कंकड़ भी नहीं रखने देंगे।

प्रशासन की फजीहत, मामला गूंजा दूर तलक
बढ़ते तनाव को देखकर प्रशासन और कंपनी के अफसरों को बैरंग लौटना पड़ा। यह बवाल अब रायगढ़ की फिजा में गूंज रहा है। किसानों का कहना है कि उनकी जमीन और पेड़ों की मेहनत का मोल चुकाना होगा। दूसरी ओर, प्रशासन मुआवजा भुगतान और टावर निर्माण के पेंच में उलझा हुआ है। अगर जल्द ही कोई हल नहीं निकला, तो यह जंग और भड़क सकती है।

किसान की जिद, हक की लड़ाई
यह विवाद सिर्फ एक टावर का नहीं, बल्कि किसान के हक और सम्मान की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। ग्रामीणों की एकजुटता और किसान की जिद ने साफ कर दिया कि बिना मुआवजे के कोई समझौता नहीं होगा। अब गेंद प्रशासन के पाले में है—या तो मुआवजा दो, या टावर का सपना भूल जाओ।
