बिलासपुर

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मनीषंकर पाण्डेय के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने का निर्देश…! याचिका पर पुलिस अधीकक्षको 3 सप्ताह में समापन रिपोर्ट दाखिल करने का दिया आदेश ..!



बिलासपुर (छत्तीसगढ़):  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जगत विज़न पत्रिका के तत्कालीन ब्यूरो चीफ मनीषंकर पाण्डेय के खिलाफ 2018 में दर्ज एक आपराधिक मामले में पुलिस को तीन सप्ताह के भीतर समापन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को जांच के समापन पर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

यह मामला 2018 में छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर के थाना क्षेत्र में दर्ज किया गया था, जब एक शिकायतकर्ता याज्ञवल्य मिश्रा ने मनीषंकर पाण्डेय और अन्य पर आरोप लगाया था कि उन्होंने जगत विज़न पत्रिका में उनके खिलाफ झूठी और अपमानजनक खबरें प्रकाशित कीं। याचिका में दावा किया गया था कि यह एफआईआर गलत तरीके से और बिना उचित जांच के दर्ज की गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि:

मनीषंकर पाण्डेय, जो एक प्रसिद्ध पत्रकार और जगत विज़न पत्रिका के ब्यूरो चीफ थे, 18 मई 2018 को इस पत्रिका में अपने कार्यभार की शुरुआत करने वाले थे। पत्रिका की एक मई 2018 की संपत्ति में, पाण्डेय द्वारा एक खबर प्रकाशित की गई थी, जिसमें शिकायतकर्ता याज्ञवल्य मिश्रा के आपराधिक इतिहास और उनके खिलाफ चल रहे मामलों का जिक्र किया गया था। इस लेख को लेकर मिश्रा ने 28 जून 2018 को पाण्डेय और अन्य के खिलाफ अंबिकापुर थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने एफआईआर संख्या 317/2018 दर्ज की।

एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं, जैसे कि धारा 120-बी (साजिश), धारा 153-बी (समूहों के बीच नफरत फैलाना), धारा 468 (जालसाजी), धारा 469 (दुश्मनी फैलाने के उद्देश्य से जालसाजी), धारा 500 (मानहानि), धारा 501 (प्रेस द्वारा मानहानि), और अन्य कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।

याचिका और न्यायालय की कार्रवाई:

मनीषंकर पाण्डेय ने इन आरोपों को गलत और निराधार बताते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने एफआईआर को रद्द करने की मांग की। उनका कहना था कि वह केवल जगत विज़न पत्रिका के ब्यूरो चीफ के रूप में काम कर रहे थे, और उनके खिलाफ प्रकाशित खबरें पूरी तरह से सत्य थीं, क्योंकि इसमें मिश्रा के आपराधिक रिकॉर्ड का उल्लेख किया गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पत्रिका की सामग्री और रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले पूरी तरह से सत्यापित किया गया था।

पाण्डेय ने यह भी दावा किया कि एफआईआर में उनके खिलाफ कोई वैध अपराध नहीं बनता था, क्योंकि वह केवल पत्रकार थे और उनके द्वारा प्रकाशित की गई खबर उनके पेशेवर कर्तव्यों के तहत थी। उनका यह भी कहना था कि मिश्रा आदतन अपराधी हैं और उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले पहले से ही दर्ज हैं।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी बताया कि उन्हें इस एफआईआर के बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी, और जब उन्हें यह जानकारी मिली, तो उन्होंने तुरंत इस एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का रुख किया।

राज्य की ओर से तर्क:

राज्य की ओर से मामले की सुनवाई के दौरान, विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि एफआईआर में उल्लिखित धाराएं उचित थीं, और जांच प्रक्रिया पूरी तरह से वैध थी। राज्य ने यह भी कहा कि मामले में पर्याप्त प्रमाण और साक्ष्य हैं, और जांच जारी है।

हालांकि, राज्य की ओर से प्रस्तुत किए गए साक्ष्य को अदालत ने पूरी तरह से जांचा और यह पाया कि जांच अधिकारी ने समापन रिपोर्ट 11 जून 2024 को तैयार की थी, लेकिन इसे सक्षम न्यायालय के पास नहीं भेजा गया था।

न्यायालय का आदेश:

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने इस मामले पर विचार करते हुए जांच अधिकारी को निर्देश दिया कि वह तीन सप्ताह के भीतर इस मामले की समापन रिपोर्ट, यदि कोई हो, सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें। अदालत ने पुलिस अधीक्षक से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि समापन रिपोर्ट अदालत तक पहुंचाई जाए।

अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आदेश जांच की स्थिति के मद्देनजर पारित किया गया है, और यदि जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कोई वैधता पाई जाती है, तो उस आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। अदालत ने मामले के निपटारे की तिथि तय की है और आदेश के पालन की निगरानी भी सुनिश्चित की है।

निष्कर्ष:

यह मामला पत्रकारिता की स्वतंत्रता और कानून के तहत जिम्मेदारी के बीच के संवेदनशील संतुलन को लेकर सामने आया है। जहाँ एक ओर पत्रकारों को सच्चाई और तथ्य को उजागर करने का अधिकार है, वहीं दूसरी ओर समाज में अफवाहों और झूठी जानकारी को फैलने से रोकने के लिए भी कड़ी निगरानी रखना जरूरी है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के इस आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि जांच अधिकारियों द्वारा मामले की सटीक और निष्पक्ष जांच नहीं की जाती है, तो अदालत उन पर कार्रवाई कर सकती है।

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