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कम मेहनताना, बढ़ता बोझ: नए साल से पहले डिलीवरी कर्मियों का गुस्सा सड़कों पर



ऑनलाइन ऑर्डर की दुनिया में जिन लोगों के भरोसे शहरों की रफ्तार चलती है, वही आज खुद थकान, तनाव और अनिश्चित भविष्य से जूझ रहे हैं। खाने से लेकर दवाइयों और रोज़मर्रा के सामान तक, समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने वाले डिलीवरी कर्मियों ने नए साल से ठीक पहले काम रोककर अपनी परेशानियों की ओर ध्यान खींचा है।

इन कर्मियों का कहना है कि लगातार बढ़ते लक्ष्य, लंबे समय तक काम और घटती आमदनी ने उनकी ज़िंदगी को मुश्किल बना दिया है। दिन-रात सड़कों पर रहने के बावजूद कई डिलीवरी पार्टनर्स को इतनी कम रकम मिलती है कि परिवार चलाना भी चुनौती बन गया है। कई वर्कर्स का दावा है कि रोज़ के खर्च निकालने के बाद उनकी बचत नाममात्र की रह जाती है।

पिछले कुछ वर्षों में ऐप आधारित सेवाओं ने शहरी जीवन को बेहद सुविधाजनक बना दिया है। किराने का सामान हो या तैयार खाना, सब कुछ कुछ मिनटों में दरवाज़े तक पहुंच जाता है। खासतौर पर महामारी के बाद इन सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ी और हजारों युवाओं ने इसे रोज़गार का साधन बनाया। सरकारी आकलन बताते हैं कि आने वाले वर्षों में इस सेक्टर में काम करने वालों की संख्या करोड़ों में पहुंच सकती है।

हालांकि बढ़ती मांग के बावजूद काम करने की शर्तें बेहतर नहीं हुईं। त्योहारी सीज़न और सेल के दौरान डिलीवरी कर्मियों पर अतिरिक्त दबाव डाला जाता है, लेकिन उसके मुकाबले भुगतान और सुरक्षा सुविधाएं नाकाफी बताई जा रही हैं। कई लोग बिना छुट्टी लिए लगातार काम करने को मजबूर हैं, क्योंकि एक दिन की गैरहाज़िरी से उनकी आमदनी पर सीधा असर पड़ता है।

डिलीवरी कर्मियों के संगठनों का कहना है कि कंपनियां उन्हें स्वतंत्र पार्टनर बताकर जिम्मेदारी से बच जाती हैं। न तो स्थायी आय की गारंटी है और न ही बीमा या स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं सभी को मिल पाती हैं। हालिया अध्ययनों में भी सामने आया है कि ज़्यादातर डिलीवरी वर्कर्स कम आय वर्ग में आते हैं और बढ़ती महंगाई के बीच उनका जीवन और कठिन होता जा रहा है।

नए साल की पूर्व संध्या पर की गई हड़ताल सिर्फ काम रोकने का कदम नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यह संकेत है कि अगर समय रहते इन कर्मियों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो सुविधा की यह तेज़ रफ्तार खुद थम सकती है।

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