
डेस्क खबर ../ बिलासपुर का नगर निगम प्रशासन पर माथा देख तिलक लगाने की तर्ज पर कार्य करता नजर आ रहा है । एक तरफ जहां गरीबों को नोटिस देने के बाद मोहलत देने से इनकार कर उनके आशियानों पर बुलडोजर कार्यवाही लगातार जारी है । वहीं दूसरी तरफ रसूखदारों को नोटिस जारी करने के बाद अवैध निर्माण की जानकारी देने के बाद भी निगम के अधिकारी चैंबर में आराम फरमाते नजर आ रहे है । निगम की इस कार्यवाही पर कई सवाल खड़े हो रहे है ?
गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले सरकंडा के लिंगियाडीह ईलाके में नगर निगम की बुलडोजर कार्रवाई ने एक मासूम की जान ले ली। पांच वर्षीय अंशुल यादव, जो कैंसर की अंतिम अवस्था में था, अपने घर को टूटते देख सदमे में चला गया। परिजनों का आरोप है कि नगर निगम ने उनके मकान को उस वक्त ढहा दिया, जब वे बच्चे का इलाज कराने रायपुर गए हुए थे। इलाज से लौटने पर अंशुल ने अपने घर को मलबे में बदला देखा और यह आघात उसके लिए असहनीय हो गया। कुछ ही घंटों में उसकी मौत हो गई। इस दौरान मां की पीड़ा भी सामने आई थी । जबकि इस मामले में प्रशासन का कहना है कि बच्चे की हालत बहुत गंभीर थी और डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया था । ऐसे में बच्चे की मौत को निगम की कार्यवाही से जोड़ा जाना उचित नहीं है ।

वहीं दूसरी ओर इस के विपरीत बिलासपुर के पाश इलाके बाजपेई मैदान तिलक नगर के सरकारी स्कूल से लगी जमीन और हनुमान मंदिर के बीच एक रसूखदार व्यापारी ने बिना अनुमति के इस जमीन पर अवैध निर्माण कर अन्दर से डुप्लेक्स दुकान का शोरूम बना दिया । निगम के भवन शाखा अधिकारी सुरेश शर्मा ने भी पुख्ता किया है कि इस मामले में पहले ही नोटिस जारी कर किसी भी प्रकार की निर्माण नहीं करने की सख्त हिदायत दी गई थी । लेकिन रसूखदार व्यापारी ने अपने रसूख के दम पर निगम के अधिकारियों के आदेश को दरकिनार करते हुए इस जमीन पर अवैध निर्माण कर अन्दर अन्दर शोरूम बना दिया है । भवन अधिकारी इस अवैध निर्माण को तोड़ने के लिए निगम कमिश्नर अमित कुमार के आदेश का इंतजार कर रहे है , वहीं निगम आयुक्त इस मामले में जल्द कार्यवाही करने की बात कह रहे है ।


बिलासपुर में बीते चार महीनों से नगर निगम द्वारा सरकारी ज़मीनों पर बनी पुरानी बस्तियों को हटाने का अभियान चलाया जा रहा है। लिंगियाडीह, सरकंडा, तोरवा, सकरी और अपोलो अस्पताल क्षेत्र इसके मुख्य केंद्र बने हुए हैं। प्रशासन का तर्क है कि ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के लिए यह कदम जरूरी है, लेकिन इसकी मानवीय कीमत भी सामने आ रही है। जहां निगम के अधिकारियों द्वारा गरीब को मोहलत नहीं देने के बाद बच्चे की मौत की इस घटना ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया है। सवाल यह है कि क्या विकास की कीमत एक मासूम की जान से चुकाई जाएगी? और क्या रसूखदारों को नोटिस के बाद भी समय और गरीबों पर तत्काल कार्यवाही कर बेघर करने का अधिकारियों का फरमान यूंही जारी रहेगा.? और क्या इस तरह गरीबों को बेघर कर मौत और रसूखदारों को समय देकर अभयदान देने का निगम के अधिकारियों का खेल आगे भी जारी रहेगा ..??




