कुसुम प्लांट हादसा: मालिकों पर कार्रवाई नहीं, मैनेजर को बनाया बलि का बकरा…!
उद्योगपति को बचाने जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन हुआ एकजुट..!
मालिको से नही हुई पूछताछ, प्रबन्धन की लापरवाही से चली गई 4 मजदुरो की जान..!
आखिर किसके रसुख के कारण नही हो रही निष्पक्ष जाँच..?
डेस्क खबर बिलासपुर…/ मुंगेली जिले के रामबोड़ स्थित कुसुम प्लांट में चार दिन पहले हुए दर्दनाक हादसे का जख्म अभी ताजा है, जिसमें सायलो गिरने से चार मजदूरों की जान चली गई। हादसे के बाद प्लांट का काम फिर से चालू हो गया है, जबकि केवल घटना वाले यूनिट को बंद किया गया है। इस मामले में पुलिस और प्रशासन की लापरवाही और मालिकों को बचाने के आरोप सामने आ रहे हैं। हादसे की खबर के बाद भी अभी तक पुलिस प्रशासन को कंपनी के मालिको और डाइरेक्टर के बारे मे जानकारी तक नही है और ना ही हादसे मे लापरवाही के आरोप लगने के बाद भी उनके खिलाफ कोई अपराध दर्ज किया गया है जिसके कारण मुंगेली जिला प्रशासन और पुलिस विभाग सवालों के घेरे मे है..?
फैक्ट्री चालू, थानेदार ने प्लांट को बनाया थाना
हादसा गुरुवार दोपहर हुआ, जिसमें चार मजदूरों की जान चली गई। प्रशासन द्वारा प्लांट को सील करने का आदेश दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद अन्य यूनिट्स में काम जारी है। सरगांव थाने के थानेदार ने घटना के बाद प्लांट को ही अपना “दरबार” बना लिया। उन्होंने आदेश दिया है कि पत्रकारों को फैक्ट्री के अंदर प्रवेश न दिया जाए और यदि कोई पूछताछ करे, तो “जांच चल रही है” कहकर टाल दिया जाए। इतना ही नही मजदुरो के शव के पोस्टमार्टम के दौरान मुंगेली जिले के पुलिस अधिकारियों ने सिम्स अस्पताल मे पत्रकारों को अंदर जाने से रोकने के लिए एडी जोड़ी का जोर लगा दिया था जिसके कारण सच उजागर करने वाले पत्रकारों से बहसबाजी भी देखने को मिली थी। और अब जांच के नाम पर गरीब मजदुरो की मौत के मामले को ठन्डे बस्ते मे डालने की पूरी कवायद जारी है।
मालिकों को बचाने की कोशिश, मैनेजर पर आरोप
फैक्ट्री मालिक सतीश अग्रवाल, आदित्य अग्रवाल, विशाल अग्रवाल और अन्य निदेशकों के खिलाफ अब तक कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने बताया कि उनके खिलाफ गैर इरादतन हत्या की धाराओं के तहत अपराध दर्ज होना चाहिए था। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने मालिकों पर कार्रवाई न करते हुए, मैनेजर अमित केडिया को बलि का बकरा बना दिया। एफआईआर में मालिकों को “अन्य” साबित कर दिया गया और कमजोर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।
मैनेजर अमित केडिया, जो राइस मिल संचालक हैं, को तीन महीने पहले फैक्ट्री के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। हादसे के बाद मालिकों ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए सारा दोष उनके सिर पर मढ़ दिया। प्रशासन ने अब तक मालिकों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की, जिससे साफ होता है कि मालिकों को बचाने की कोशिश की जा रही है।
हादसे में प्रशासन और पुलिस की लापरवाही उजागर
घटना के तुरंत बाद एक शव को मलबे से निकालकर जिला अस्पताल भेजा गया, जबकि बाकी तीन शवों को निकालने में 40 घंटे का समय लगा। इसके बाद भी शवों के पोस्टमार्टम में देरी की गई। सिम्स प्रबंधन ने पुलिस कप्तान के आदेश का इंतजार किया और शवों को सड़ने दिया। दूसरी ओर, रिफर लेटर में भी गड़बड़ियां पाई गईं।
सरगांव पीएससी के डॉक्टर जयंत टोप्पो ने बिना शव देखे रिफर लेटर जारी किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि शव 11 जनवरी को लाए गए थे। जबकि सच्चाई यह है कि शव शनिवार सुबह ही सिम्स लाए गए थे। डॉक्टर ने थानेदार के दबाव में यह रिफर लेटर जारी किया।
स्थानीय लोगों और कर्मचारियों का आक्रोश
स्थानीय लोग और फैक्ट्री कर्मचारी प्रशासन और मालिकों के खिलाफ आक्रोशित हैं। कर्मचारियों का कहना है कि इस देश में गरीबों को न्याय मिलना बेहद मुश्किल है। प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत के कारण मालिकों को बचाने की पूरी कोशिश हो रही है। वहीं, मृतकों के परिजन मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
जांच का आदेश और प्रशासन की लीपापोती
दूसरे दिन उपमुख्यमंत्री अरुण साव के बयान के बाद कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए और फैक्ट्री को सील करने का निर्देश दिया। लेकिन यह सीलिंग केवल दिखावा साबित हुई, क्योंकि फैक्ट्री आज भी चालू है। कलेक्टर ने यह भी कहा कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
कमजोर धाराओं के तहत अपराध दर्ज
हादसे में पुलिस ने केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए मामला दर्ज किया, लेकिन धाराएं इतनी कमजोर हैं कि आरोपी प्रबंधन को थाने से ही जमानत मिल सकती है। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि पुलिस और प्रशासन ने मालिकों को बचाने के लिए धाराओं को जानबूझकर हल्का रखा है।
न्याय की उम्मीद धूमिल
कुसुम प्लांट हादसा केवल चार मजदूरों की मौत का मामला नहीं है, बल्कि यह गरीबों के साथ न्याय और प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है। इस घटना ने प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली को उजागर किया है, जहां मालिकों के प्रभाव में गरीबों के अधिकारों और न्याय को कुचला जा रहा है। सूत्रो की माने तो आदित्य अग्रवाल हिंद एनर्जी के मालिक सतीश अग्रवाल का पुत्र है और इसके रसुख और राजनैतिक संरक्षण के चलते जिला प्रशासन और पुलिस विभाग भारी दबाब मे है शायद यही कारण है की लगभग 5 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक पुलिस विभाग को प्लांट के मालिको के बारे मे कोई जानकारी नही है। वही प्लांट मे काम करने वाले मजदुरो ने भी मीडिया को बताया था की जिस साइलो के कारण यह हादसा हुआ वह ठीक तरीके से काम भी नही कर रहा था जिसकी शिकायत मजदुरो ने मालिको से भी की थी.. लेकिन पैसों कमाने के कारण मालिक की लापरवाही के चलते राख मे दबकर 4 मजदुरो की मौत हो गई
अब देखना यह है कि जांच के बाद दोषियों पर कोई कड़ी कार्रवाई होती है या प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत से मामला रफा-दफा कर दिया जाएगा।