छत्तीसगढ़बिलासपुर

एटीआर में विदेश से आ रहे गिद्ध: टैगिंग से पहचान कर संरक्षण की पहल. गिद्धों को बचाने की हो रही कोशिश।

बिलासपुर।अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) के औरापानी क्षेत्र में गिद्धों की संख्या सैकड़ों में पहुँच गई है। यहाँ देशी गिद्धों के अलावा विदेशों से भी गिद्ध आकर अपना निवास बना रहे हैं। इन विदेशी गिद्धों की संख्या 12 से अधिक हो चुकी है। इनकी पहचान और संरक्षण के लिए एटीआर प्रबंधन ने एक नई टैगिंग योजना की शुरुआत की है। मानसून के बाद इन गिद्धों को टैगिंग के जरिए चिन्हित किया जाएगा, ताकि ये गिद्ध इधर-उधर न भटक सकें।

गिद्धों के संरक्षण की दिशा में अनूठी पहल

गिद्धों के व्यवहार और उनके निवास स्थल के बारे में स्पष्ट और प्रमाणित जानकारी प्राप्त करने के लिए पहली बार गिद्धों को जीपीएस टैगिंग करने की योजना बनाई गई है। एटीआर प्रबंधन का कहना है कि देश में पाई जाने वाली गिद्धों की 9 प्रजातियों में से 3 प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं। ये प्रजातियाँ हिमालयन ग्रिफॉन, यूरोशियन ग्रिफॉन और सिनरस जैसी प्रवासी प्रजातियाँ हैं। इसके अलावा लंबी चोंच वाले गिद्ध, सफेद पूंछ वाला राज गिद्ध और इजीप्शियन गिद्ध भी इस क्षेत्र में पाए जाते हैं।

गिरती गिद्ध आबादी और संरक्षण की आवश्यकता

1990 के दशक के मध्य में सफेद पूंछ वाले गिद्ध (जिप्स बेंगालेंसिस), भारतीय गिद्ध (जी इंडिकस) और पतली चोंच वाले गिद्ध (जी टेन्यूरो्ट्रिरस) की आबादी में तेजी से गिरावट आई थी। एटीआर में भी दो प्रजातियों के गिद्ध, लांग बिल्ड वल्चर और इंडियन वल्चर, के 50 से अधिक गिद्ध औरापानी में विचरण करते हैं। इन गिद्धों की लगातार निगरानी की जाती है, लेकिन कई बार ये गिद्ध इधर-उधर भटक जाते हैं, जिससे उनकी खोज में परेशानी होती है l

जीपीएस टैगिंग की योजना

इस समस्या के समाधान के लिए अचानकमार टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने गिद्धों को जीपीएस सिस्टम से टैग करने का निर्णय लिया है। बॉम्बे नेचरल हिस्टोरिकल सोसायटी (बीएनएचएस) संस्था इस कार्य के लिए सभी स्टाफ को प्रशिक्षण देगी। औरापानी एक ऐसी जगह है जहाँ बारिश के मौसम में पहुँचना संभव नहीं होता। अक्टूबर-नवंबर के बाद जब औरापानी का रास्ता खुल जाएगा, तब टैगिंग का काम शुरू किया जाएगा।

 

डिप्टी डायरेक्टर गणेश यू आर ने बताया, “औरापानी में विदेशी गिद्धों के अलावा 100 किलोमीटर के अंदर 7 प्रजातियाँ जैसे हिमालयन रोपन, इंडियन वल्चर, रेड हैडन वल्चर, यूरोशियन रोपन, लॉंग बिल्ड वल्चर और अन्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन सभी को सर्वे के बाद चिन्हांकित किया गया है और इनमें टैगिंग का कार्य बारिश के बाद शुरू किया जाएगा।”

गिद्ध होगे सुरक्षित

अचानकमार टाइगर रिजर्व में गिद्धों के संरक्षण के लिए की जा रही यह पहल एक महत्वपूर्ण कदम है। जीपीएस टैगिंग से गिद्धों के व्यवहार और उनके निवास स्थल के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त होगी, जिससे उनके संरक्षण में मदद मिलेगी। यह योजना न केवल गिद्धों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि उनके संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी प्रस्तुत करेगी।

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