

डेस्क खबर बिलासपुर…/ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी बिलासपुर रेल मंडल में बिना तिरपाल ढंके मालगाड़ियों से कोयला परिवहन किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कोयला परिवहन के दौरान तिरपाल का उपयोग अनिवार्य किया था, लेकिन रेलवे अधिकारी इस आदेश की खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। कर्मचारियों के अनुसार, अधिकारियों के मौखिक आदेश के कारण तिरपाल नहीं लगाया जाता, क्योंकि इससे खर्च और समय बढ़ता है। बिलासपुर के मेन स्टेशन से लेकर तमाम अधिकारियों के सामने कोर्ट मे दिये गए शपथ पत्र की धज्जिया उड़ाते हुए रेलवे की लापरवाही और अनदेखी की तस्वीरे भी सामने आई है जिसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिलासपुर आगमन के दौरान बिना तिरपाल ढके कोयले से लदी गाड़िया पटरियों मे सर पट दौड़ती नजर आ रही है जबकि मोदी को सुनने और देखने आये लोग भरी दोपहर मे तेज गर्मी को सहते नजर आये।
हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस उल्लंघन पर सवाल उठाए गए, जिसके जवाब में रेलवे अधिकारियों ने दावा किया कि वे नियमों का पालन कर रहे हैं। हालांकि, तस्वीरों और जमीनी हकीकत ने उनकी बातों को झूठा साबित कर दिया। कोर्ट ने शपथ पत्र के आधार पर मामला समाप्त कर दिया, लेकिन यह साफ हो गया कि रेलवे अधिकारियों ने अदालत को भी गुमराह किया।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अधिकारी हाईकोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर रहे हैं। कोयला परिवहन के दौरान ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों का पालन करने की शपथ लेने के बावजूद, मालगाड़ियों में बिना तिरपाल ढंके कोयला ढोया जा रहा है। इससे कोल डस्ट उड़कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है और स्थानीय जनजीवन प्रभावित हो रहा है।
रेलवे कर्मचारियों का कहना है कि अधिकारियों के मौखिक आदेश के कारण वे तिरपाल नहीं लगा पा रहे हैं। अधिकारियों का तर्क है कि तिरपाल लगाना महंगा और समय लेने वाला काम है, जिससे मालगाड़ियों की रफ्तार धीमी हो जाती है। जबकि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट आदेश दिया था कि कोयले सहित अन्य खनिजों के परिवहन के दौरान उन्हें तिरपाल से ढकना अनिवार्य होगा ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। बिलासपुर रेल मंडल के बृजराजनगर, झारसुगुड़ा, कोरबा, उमरिया सहित अन्य कोल साइडिंग से प्रतिदिन सैकड़ों मालगाड़ियां रवाना होती हैं। इन गाड़ियों में बिना तिरपाल कोयला ढोने से स्थानीय इलाकों में कोयले की धूल उड़कर प्रदूषण बढ़ा रही है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है बल्कि लोगों को सांस संबंधी बीमारियों का भी खतरा बढ़ रहा है।

इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें मालगाड़ियों में तिरपाल न लगाए जाने की तस्वीरें भी प्रस्तुत की गईं। कोर्ट ने रेलवे अधिकारियों से व्यक्तिगत शपथ पत्र मांगा था, जिसमें अधिकारियों ने दावा किया कि कोयले को ढंकने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन वास्तविकता में इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। अदालत ने इस शपथ पत्र पर भरोसा करते हुए मामला समाप्त कर दिया, लेकिन हकीकत यह है कि रेलवे अधिकारियों ने कोर्ट को भी गुमराह किया।बिलासपुर रेल मंडल में बड़े पैमाने पर नियमों का उल्लंघन जारी है और पर्यावरण संरक्षण के नियमों की अनदेखी की जा रही है। प्रशासन को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों का सख्ती से पालन हो और पर्यावरण को बचाया जा सके।

