बिलासपुर

नाराजगी नहीं नाखुशी का मामला..आखिर क्या वजह रही… कि तोखन के पक्ष में यहां खटाखट क्यों नहीं गिरे वोट….?????वर्चस्व ने कर दिया नाखुश????पार्टी के अंदर चल रहा है मंथन….पढ़े लोरमी में 3 महीने में खिसके भाजपा के जनाधार पर ये खबर…

*बिलासपुर –कल भंग की गई लोकसभा के मंत्रिपरिषद् की आखिरी बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोगों में सरकार नहीं, उम्मीदवार विशेष को लेकर नाराजगी थी। 1 लाख 64 हजार मतों के विशाल अंतर से जीतने वाले बिलासपुर संसदीय सीट के उम्मीदवार तोखन साहू के संदर्भ में मोदी की बात तौली जा सकती है। तोखन साहू लोरमी के रहने वाले हैं और यहीं से उपमुख्यमंत्री अरुण साव भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं।

यह वह जगह थी जहां से सबसे ज्यादा बढ़त भाजपा को मिल सकती थी। पर सिर्फ 464 मतों से तोखन साहू को बढ़त हासिल हुई, जो अन्य किसी भी विधानसभा में कांग्रेस भाजपा के बीच वोटों का सबसे कम अंतर है। अरुण साव कह सकते हैं कि डिप्टी सीएम होने के चलते वे अकेले लोरमी नहीं, पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर प्रचार करते रहे।*

*मगर, तोखन साहू तो लोरमी के लिए जाने-पहचाने चेहरे हैं। वे 2013 में विधानसभा जीतकर संसदीय सचिव बने थे, 2018 में धर्मजीत सिंह ठाकुर से हार गए थे। लोरमी की जनता के पास एक उपमुख्यमंत्री पहले से था, फिर एक सांसद भी मिलने वाला था, फिर वोट तोखन साहू के पक्ष में खटाखट क्यों नहीं गिरे?

इलाके में इसके दो तीन कारण बताए जा रहे हैं। एक पक्ष कह रहा है कि तोखन को लेकर कोई नाराजगी नहीं थी, बल्कि उनका और भाजपा का लोरमी के लिए बेफिक्र हो जाना बड़ा कारण था। फिर एक दूसरी बात यह थी कि ओबीसी यादव समाज के मतदाता बड़ी संख्या में लोरमी में हैं। उन्हें देवेंद्र यादव का साथ मिला। वे साहू-साहू वर्चस्व को लेकर आशंकित तथा नाखुश थे। तीसरी यह वजह आई कि तोखन साहू लोरमी के लिए नया चेहरा नहीं थे। बाकी विधानसभा सीटों के लिए वे नए थे। मोदी मैजिक और महतारी वंदन ने बाकी सीटों पर तो काम किया पर लोरमी में उनकी विधायकी के परफार्मेंस पर लोगों ने ध्यान दिया। शायद इसीलिये 2018 में हराया भी था। इन सबके बावजूद तोखन साहू की जीत 2019 में बिलासपुर सीट से मिली जीत से बड़ी है।*

error: Content is protected !!